आज जुलाई 20 है। प्रशिक्षण का 15 वीं दिन है। मैं बहुत उत्साह से ये blogg लिख रहा हूँ कि इतने दिन कैसे चलाया था? मुझे पता नहीं है। नवीँ एवं आठवीं कक्षा के छात्र बड़ी छाव से मुझसे बात चीत करते हैं। आठवीं कक्षा में केवल दोनों बच्चे हैं। वह मेरे हाथ में सुरक्षित हैं। लेकिन नवीँ कक्षा में 39 छात्र होते हैं। इतने बच्चों को देखना एवं संभालना थोड़ी परिश्रम की बात है। इतने सारे दिनों में मैं बहुत आत्मसम्मान के साथ कक्षा ली गई। मेरी सारी प्रयत्न छात्रों को ज्ञान बाँटने के लिए प्रयोग करते हैं। छात्रों ने भी मुझसे प्यार से व्यवहार करते हैं। बीचों - बीच थोड़ी - थोड़ी नटखट व्यवहार वे करते हैं। मैं इन सबका आस्वादन करते हैं। हम लोगों यहाँ अध्यापक विद्यार्थी नहीं, अध्यापक हैं। ऐसा व्यवहार हर अध्यापक हमसे करते हैं। यहाँ के अध्यापक की काम सबको करने में हम ख़ुश हैं। मुझे लगता हा कि +2 में कक्षा लेना उचित होगा। एक अलग परिवेश में कक्षा लेना कैसे सहायक बने? इसके लिए मैं +2 में भी कक्षा लेने का निर्णय लिया। इसके लिए बड़ी उत्साह से मेरी अध्यापिका जयकृष्णा जी मुझे अनुमति दे दिया।